श्री भरेव चालीसा॥दोहा॥विश्वनाथ को सुमिरि मन, धर गणेश का ध्यान।भैरव चालीसा रचु, कृपा करहु भगवान॥बटुकनाथ भैरव भजं, श्री काली के लाल।छीतरमल पर कृपा कर, काशी के कुतवाल॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब॥चौपाई॥जय जय श्री काली के लाला, रहो दास पर सदा दयाला।भैरव भीषण भीम कपाली, क्रोधवंत लोचन में लाली॥कर त्रिशूल है कठिन कराला, गल में प्रभु मुंडन की माला।कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला, पीकर मद रहता मतवाला॥रूद्र बटुक भक्तन के संगी, प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी।त्रैल तेश है नाम तुम्हारा, चक्र तुन्ड अमरेश पियारा॥शेखर चन्द्र कपाल विराजे, स्वान सवारी पै प्रभु गाजे।शिव नकुलेश चंड हो स्वामी, बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥अश्वनाथ क्रोधेश बखाने, भैरों काल जगत ने जाने।गायत्री कहे निमिष दिगंबर, जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥क्षेत्रपाल दसपाण कहाए, मंजुल उमानंद कहलाये।चक्रनाथ भक्तन हितकारी, कहे त्रयम्बक सब नर नारी॥संहारक सुनन्द तव नामा, करहु भक्त के पूरण कामा।नाथ पिशाचन के हो प्यारे, संकट मेटहू सकल हमारे॥कृत्यायू सुन्दर आनंदा, भक्तन जनन के काटहु फन्दा।कारन लम्ब आप भय भंजन, नमो नाथ जय जनजन (जनमन) रंजन॥हो तुम देव त्रिलोचन नाथा, भक्त चरण में नावत माथा।त्वं अशतांग रूद्र के लाला, महाकाल कालों के काला॥ताप विमोचन अरिदल नासा, भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा।श्वेत काल अरु लाल शरीरा, मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥काली के लाला बलधारी, कहां तक शोभा कहूँ तुम्हारी।शंकर के अवतार कृपाला, रहो चकाचक पी मद प्याला॥काशी के कुतवाल कहाओ, बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।रवि के दिन जन भोग लगावें, धुप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥दर्शन कर के भक्त सिहावें, दारूड़ा की धर पियावें।मठ में सुन्दर लटकत झावा, सिद्ध कार्य करो भैरों बाबा॥नाथ आपका यश नहीं थोड़ा, कर में शुभग सुशोभित कोड़ा।कटी घूंघरा सूरीले बाजत, कंचन के सिंहासन राजत॥नर नारी सब तुमको ध्यावहिं, मन वांछित इक्छा फल पावहिं।भोपा है आप के पुजारी, करें आरती सेवा भारी॥भैरव भात आप का गाऊं, बार बार पद शीश नवाऊं।आपही वारे छीजन धाये, ऐलादी ने रुदन मचाये॥बहन त्यागी भाई कहां जावे, तो बिन को मोहि भात पिन्हावे।रोये बटुकनाथ करुणा कर, गये हिवारे मैं तुम जाकर॥दुखित भई ऐलादी बाला, तब हर का सिंहासन हाला।समय ब्याह का जिस दिन आया, प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ, तीन दिवस को भैरव जाओ।दल पठान संग लेकर धाया, ऐलादी को भात पिन्हाया॥पूरण आस बहिन की किन्ही, सुर्ख चुंदरी सिर धरी दीन्ही।भात भरा लौटे गुणग्रामी, नमो नमामी अंतर्यामी॥॥दोहा॥जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार।कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार॥जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार। उस घर सर्वानन्द हो, वैभव बढे़ अपार॥
श्री भरेव चालीसा
॥दोहा॥
विश्वनाथ को सुमिरि मन, धर गणेश का ध्यान।
भैरव चालीसा रचु, कृपा करहु भगवान॥
बटुकनाथ भैरव भजं, श्री काली के लाल।
छीतरमल पर कृपा कर, काशी के कुतवाल॥
॥चौपाई॥
जय जय श्री काली के लाला, रहो दास पर सदा दयाला।
भैरव भीषण भीम कपाली, क्रोधवंत लोचन में लाली॥
कर त्रिशूल है कठिन कराला, गल में प्रभु मुंडन की माला।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला, पीकर मद रहता मतवाला॥
रूद्र बटुक भक्तन के संगी, प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी।
त्रैल तेश है नाम तुम्हारा, चक्र तुन्ड अमरेश पियारा॥
शेखर चन्द्र कपाल विराजे, स्वान सवारी पै प्रभु गाजे।
शिव नकुलेश चंड हो स्वामी, बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने, भैरों काल जगत ने जाने।
गायत्री कहे निमिष दिगंबर, जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥
क्षेत्रपाल दसपाण कहाए, मंजुल उमानंद कहलाये।
चक्रनाथ भक्तन हितकारी, कहे त्रयम्बक सब नर नारी॥
संहारक सुनन्द तव नामा, करहु भक्त के पूरण कामा।
नाथ पिशाचन के हो प्यारे, संकट मेटहू सकल हमारे॥
कृत्यायू सुन्दर आनंदा, भक्तन जनन के काटहु फन्दा।
कारन लम्ब आप भय भंजन, नमो नाथ जय जनजन (जनमन) रंजन॥
हो तुम देव त्रिलोचन नाथा, भक्त चरण में नावत माथा।
त्वं अशतांग रूद्र के लाला, महाकाल कालों के काला॥
ताप विमोचन अरिदल नासा, भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा।
श्वेत काल अरु लाल शरीरा, मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥
काली के लाला बलधारी, कहां तक शोभा कहूँ तुम्हारी।
शंकर के अवतार कृपाला, रहो चकाचक पी मद प्याला॥
काशी के कुतवाल कहाओ, बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।
रवि के दिन जन भोग लगावें, धुप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥
दर्शन कर के भक्त सिहावें, दारूड़ा की धर पियावें।
मठ में सुन्दर लटकत झावा, सिद्ध कार्य करो भैरों बाबा॥
नाथ आपका यश नहीं थोड़ा, कर में शुभग सुशोभित कोड़ा।
कटी घूंघरा सूरीले बाजत, कंचन के सिंहासन राजत॥
नर नारी सब तुमको ध्यावहिं, मन वांछित इक्छा फल पावहिं।
भोपा है आप के पुजारी, करें आरती सेवा भारी॥
भैरव भात आप का गाऊं, बार बार पद शीश नवाऊं।
आपही वारे छीजन धाये, ऐलादी ने रुदन मचाये॥
बहन त्यागी भाई कहां जावे, तो बिन को मोहि भात पिन्हावे।
रोये बटुकनाथ करुणा कर, गये हिवारे मैं तुम जाकर॥
दुखित भई ऐलादी बाला, तब हर का सिंहासन हाला।
समय ब्याह का जिस दिन आया, प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ, तीन दिवस को भैरव जाओ।
दल पठान संग लेकर धाया, ऐलादी को भात पिन्हाया॥
पूरण आस बहिन की किन्ही, सुर्ख चुंदरी सिर धरी दीन्ही।
भात भरा लौटे गुणग्रामी, नमो नमामी अंतर्यामी॥
॥दोहा॥
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार॥
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार।
उस घर सर्वानन्द हो, वैभव बढे़ अपार॥
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