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श्री कृष्ण चालीसा॥दोहा॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम॥पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज॥॥चौपाई॥जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन।जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥जय नट-नागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो॥बंशी मधुर अधर धरि तेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी।आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो॥गोल कपोल, चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट बैजन्ती माला॥कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे।नील जलज सुन्दर तनु सोहे, छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥मस्तक तिलक, अलक घुंघंराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले।करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागासुर मारयो॥मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई॥लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो।लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो।नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दै निर्भय कीन्हें॥करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करी अभिलाषा।केतिक महा असुर संहारयो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई।महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो॥भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दश सहस कुमारी।दें भीमहिं तृण चीर सहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो।दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि मुख डारयो॥प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे।लखी प्रेम की महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी॥भारत के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थाके।निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजाकर ताली।राणा भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी॥निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उर ते संशय सकल मिटायो।तब शत निन्दा करी तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥जबहिं द्रौपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई।तुरतहिं वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुँह काला॥अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया।सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी॥नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहु बेगि अपराध हमारो।खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥॥दोहा॥यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

श्री कृष्ण चालीसा

॥दोहा॥

By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज॥

॥चौपाई॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन।
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो॥

बंशी मधुर अधर धरि तेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी।
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।
रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट बैजन्ती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे।
नील जलज सुन्दर तनु सोहे, छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघंराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले।
करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दै निर्भय कीन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करी अभिलाषा।
केतिक महा असुर संहारयो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई।
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दश सहस कुमारी।
दें भीमहिं तृण चीर सहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो।
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे।
लखी प्रेम की महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थाके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजाकर ताली।
राणा भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उर ते संशय सकल मिटायो।
तब शत निन्दा करी तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई।
तुरतहिं वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुँह काला॥

अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया।
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहु बेगि अपराध हमारो।
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥दोहा॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

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